Ayodhya Vivad Ki Puri Jankari - Hindime

Ayodhya Vivad Ki Puri Jankari

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जैसा की आप सब जानते हैं की अयोध्या विवाद एक राजनीतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक-धार्मिक विवाद है जो नब्बे के दशक में सबसे ज्यादा उभार पर था. इस विवाद का मूल मुद्दा राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद की स्थिति को लेकर है. विवाद इस बात को लेकर है कि क्या हिंदू मंदिर को ध्वस्त कर वहां मस्जिद बनाया गया या मंदिर को मस्जिद के रूप में बदल दिया गया.हालाँकि आज के दिन 09/11/2019 इस बात का फैसला हो जायेगा की वहां मंदिर होगा या मस्जिद.
ayodhya faisla date 9nov 2019


बाबरी मस्जिद का इतिहास

मुग़ल शासक बाबर 1526 में भारत आया था और 1528 तक वह अवध जो की अभी अयोध्या कहलाता है तक पहुँच गया था.बाबर ने यहाँ अपने सेनापति मीर बाकी को एक मस्जिद बनाने को कहा था और फिर बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1528-29 में एक मस्जिद का निर्माण कराया था.इसमें बहुत सारे लोग ये मानते हैं की इस मस्जिद को एक मंदिर को तोड़ कर बनाया गया था जब कुछ लोगो का कहना है की इस मस्जिद को बिना किसी मंदिर को तोड़े बनाये गए थे.

राम जन्मभूमि विवाद का संक्षिप्त इतिहास----

  • १५२८ में राम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी. हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान राम का जन्म हुआ था.
  • १८५३ में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ.
  • १८५९ में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा.
  • १९४९ में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई.तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया.
  • सन् १९८६ में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की.
  • सन् १९८९ में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू की.
  • ६ दिसम्बर १९९२ को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई. परिणामस्वरूप देशव्यापी दंगों में करीब दो हजार लोगों की जानें गईं.
  • उसके दस दिन बाद १६ दिसम्बर १९९२ को लिब्रहान आयोग गठित किया गया. आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश एम.एस. लिब्रहान को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया.
  • लिब्रहान आयोग को१६ मार्च १९९३ को यानि तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में १७ साल लगाए.
  • १९९३ में केंद्र के इस अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली. चुनौती देने वाला शख्स मोहम्मद इस्माइल फारुकी था। मगर कोर्ट ने इस चुनौती को ख़ारिज कर दिया कि केंद्र सिर्फ इस जमीन का संग्रहक है. जब मलिकाना हक़ का फैसला हो जाएगा तो मालिकों को जमीन लौटा दी जाएगी. हाल ही में केंद्र की और से दायर अर्जी इसी अतिरिक्त जमीन को लेकर है.
  • १९९६ में राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार से यह जमीन मांगी लेकिन मांग ठुकरा दी गयी. इसके बाद न्यास ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसे १९९७ में कोर्ट ने भी ख़ारिज कर दिया.
  • २००२ में जब गैर-विवादित जमीन पर कुछ गतिविधियां हुई तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई.
  • २००३ में इस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता.
  • ३० जून २००९ को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में ७०० पन्नों की रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपा.
  • जांच आयोग का कार्यकाल ४८ बार बढ़ाया गया.
  • ३१ मार्च २००९ को समाप्त हुए लिब्रहान आयोग का कार्यकाल को अंतिम बार तीन महीने अर्थात् ३० जून तक के लिए बढ़ा गया.
  • २०१० में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया. न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए. न्यायालय ने यह भी कहा कि वहाँ से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा.न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा.दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए.लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.
  • उच्चतम न्यायालय ने ७ वर्ष बाद निर्णय लिया कि ११ अगस्त २०१७ से तीन न्यायधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी। सुनवाई से ठीक पहले शिया वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में याचिका लगाकर विवाद में पक्षकार होने का दावा किया और ७० वर्ष बाद ३० मार्च १९४६ के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति घोषित अर दिया गया था.
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